Premanand Ji Maharaj: ‘हमने क‍िसी को फोन नहीं क‍िया…’ ज‍िस पदयात्रा पर मचा व‍िवाद, प्रेमानंद महाराज ने खुलकर रखी अपनी बात

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Premanand ji maharaj: वृंदावन के संत प्रेमानंद महाराज ने NRI सोसायटी के विरोध के बाद अपनी रात्रिकालीन पदयात्रा का रास्ता बदल लिया है. अब वे आश्रम के पास ही भक्तों को दर्शन देते हैं. लेकिन इस व‍िरोध से पहले ही प्रेमानंद महाराज जानते थे कि लोग इस यात्रा का व‍िरोध करेंगे.

  • प्रेमानंद महाराज ने विरोध के बाद पदयात्रा का रास्ता बदला.
  • NRI सोसायटी के विरोध के कारण पदयात्रा में बदलाव किया गया.
  • अब प्रेमानंद महाराज आश्रम के पास ही भक्तों को दर्शन देते हैं.

वृंदावन के प्रस‍िद्ध संत प्रेमानंद महाराज जी की रात्र‍िकालीन पद यात्रा पर हुए व‍िरोध के बाद उन्‍होंने तुरंत अपनी इस पदयात्रा का रास्‍ता बदल ल‍िया है. जहां पहले इस पद यात्रा में लोगों को काफी दूरी तक प्रेमानंद महाराज के दर्शन म‍िलते थे.

Premanand ji maharaj
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Premanand ji maharaj: वहीं अब वह अपने आश्रम से चंद कदम दूरी पर ही अपनी कार से उतरते हैं और भक्‍तों को दर्शन देते हैं. दरअसल वृंदावन की NRI सोसायटी के कुछ न‍िवास‍ियों ने इस पदयात्रा का व‍िरोध क‍िया था कि रातभर ढोल-नगाड़ों की आवाज आती है और उनकी ब‍िल्‍ड‍िंग के बाहर भीड़ लगी रहती है.

Premanand ji maharaj: लेकिन इस सारे व‍िरोध से काफी समय पहले ही प्रेमानंद महाराज इस बात का ज‍िक्र कर चुके थे कि ऐसा होगा कि लोग इस यात्रा का व‍िरोध करेंगे.

प्रेमानंद महाराज ने अपनी इस यात्रा के बारे में बात करते हुए कहा था, ‘जब हम अपनी श्रीजी प्रदत्त कुटिया से निकलते हैं, तो हमें कुछ पता नहीं होता कि सामने कौन है, आगे क्या होगा कुछ पक्का नहीं है.

ये सब जो हो रहा है वह महारानीजु से हो रहा है. हमने कभी क‍िसी को दीक्षा के लि‍ए या दर्शन के ल‍िए फोन नहीं किया. बल्‍कि हम तो निषेध ही करते हैं. शांत रहो, रात्र‍ि का समय है. पर अब क‍िस-क‍िस को संभालें रात्र‍ि का समय है. लेकिन जब कोई राधा-राधा करता है तो हमारी छाती फूल जाती है.’

Premanand ji maharaj: प्रेमानंद महाराज आगे कहते हैं, ‘हमारी स्‍वाम‍िनी की जय-जयकार सुनकर हम फूल जाते हैं. नौजवान जय श्री राधे-जय श्री राधे बोलते हैं, ऐसा लगता है कि क्‍या दे दूं इनको… पूरी रात्र‍ि जाग कर यहां आए हैं. लेकिन अब चश्‍मा बदल गया है.

Premanand ji maharaj
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अब आपको दिखाई देगा कि बाबा देखो कैसे लोगों को इकट्ठा कर रहा है, अपना प्रचार-प्रसार कर रहा है. बताओ रात्र‍ि में बैंड बजवा रहा है, ढोल बजा रहा है. पर सच्‍ची बात है कि मुझे कुछ पता नहीं होता कि कौन, कहां, क्‍या और कैसे हो रहा है.’ वह आगे कहते हैं कि लोगों को लग रहा है कि फूल रोड़ में बाबा जी फ‍िकवां रहे हैं.

Premanand ji maharaj: लेकिन सच ये है कि हमें नहीं पता कि वो फूल फेंकेगा कि कांटा फेकेगा या ईंट मारेगा. हमें कुछ नहीं पता होता है. हमारी श्रीजी क्‍या कर रही हैं, हम तो बस देखते रहते हैं. उनका प्रताप हमारे साथ चलता है. आप क‍िसी और प्रलोभन से लोगों को इकट्ठा कर लो… नहीं भई. ये लोग अलबेली सरकार के ल‍िए आते हैं.’

अपनी यात्रा पर बात करते हुए प्रेमानंद महाराज ने कहा, ‘ज‍िस द‍िन हम नहीं थे, हमारा स्‍वास्‍थ्‍य ठीक नहीं था, तो हमें बताया गया कि पचासों लोग रो रहे थे. इसील‍िए इसीलिए चाहे बुखार हो, कैसी परिस्थिती हो, उनसे छुपाकर हम यात्रा पर न‍िकलते हैं. लेकिन जब हमारा चश्मा जब बदल जाता है तो दृश्य भी बदल जाता है. ये दृश्य का दोष नहीं है, बल्‍कि अपनी दृष्टि का दोष होता है.’

प्रेमानंद महाराज राधा रानी के भक्‍त हैं और वृंदावन से बाहर कभी नहीं जाते. उनके दर्शन और उनके प्रवचन लाखों-करोड़ों लोगों को प्रेर‍ित करते हैं.

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